Healthonic Healthcare - Aarogyam Sukhsampada
Aarogyam Sukhsampada - Health is the divine wealth.

* हेवी मेटल- जड़ धातुओं के (विशेषत: शीशे) विषैले परिणामों से (संरक्षण) :

भारत जैसे विकसनशील देश में आने वाले हर एक नये दिन के साथ, शीशे एवं कॅडमियम के कारण होने वाले प्रदुषण की समस्याएँ गंभीर रुप धारण करती चली जा रही हैं। समाज पुन: पुन: शीशे एवं कॅडमियम द्वारा प्रदूषित वायु, प्रदूषित पीने का पानी, प्रदूषित मिट्टी में पैदावार किया गया अनाज, उसी प्रकार शीशे एवं कॅडमियम युक्त औद्योगिक माल एवं ग्राहक उत्पादन के संपर्क में आ रहे हैं।

कॅडमियम से होने वाले विषबाधा के कारण विविध अवयवों को हानि पहुँच सकती है जैसे- फेफडे, यकृत, मूत्रपिंड, हड्डीया, हृदय एवं प्रजननसंस्था संबंधित इंद्रीयाँ आदि जिससे आरोग्य पर प्रतिकूल परिणाम हो सकता है। यह एक शक्तिशाली कार्सिनोजेल (कर्करोग निर्माण करने वाले पदार्थ) के रूप में भी जानापहचाना जाता है, जो कर्करोग होने की संभावना बढ़ाता है।

कॅडमियम के ही समान, शीशे का संपर्क भी आरोग्य पर होने वाले प्रतिकूल प्रभावों के साथ संबंधित है। इससे मज्जासंस्था रक्त एवं रक्त घटक यकृत मूत्रपिंड एवं प्रजनन संस्था से संबंधित इंद्रीयों को नुकसान पहुँच सकता है।

छोटे बच्चों के लिए इन जड़ धातुओं के विषैले प्रभावों के संपर्क में आना और भी अधिक धोखादायी होता है।

मानवी शरीर में, रासायनिक प्रक्रियाओं द्वारा जड़ धातु कुछ हानिकारक रेणु निर्माण कर सकते है जैसे- प्रतिक्रियाशील ऑक्सिजन प्रजाति एवं मुक्त अभारित रेणु, जो मानवी शरीर को ऑक्सिडेटिव तनाव के अन्तर्गत रख सकते हैं। जड़ धातुओं के कारण होने वाले विषबाधा का यही मुख्य कारण है। विटामिन-सी यह एक शक्तिशाली अँटिऑक्सीडेंट होने के कारण इस ऑक्सिडेटिव तनाव का एवं मानवी शरीर पर होने वाले उसके हानिकारक प्रभावों का प्रतिकार कर सकता है और इसीलिए जड़ धातुओं के (शीशा एवं कॅडमियम) विषैले प्रभावों से सुरक्षित रख सकता है।

* मज्जातंतुओं के गिरती हुई स्थिति से संबंधित (न्युरोलॉजिकल एवं डिजेनेरेटिव बीमारी) बिमारी पर जिस प्रकार की स्किझोफ्रेनिया (इस बीमारी में विचार, भावना एवं कृति इन में काफी फरक दिखाई देने लगता है - इस प्रकार की मानसिक बीमारी) और अल्झाइमर्स की (मस्तिष्क में आने वाली विकृती के कारण विशेषत: वृद्धों को होने वाली व्याधि इनमें स्मरणशक्ति, बात-चीत, हलचल करना आदि क्रियायें धीरे-धीरे मंद हो जाती हैं) इसका निवारण एवं उपचार-

स्किझोफ्रेनिया इस मज्जातंतू से संबंधित बीमारी में से एक प्रमुख बीमारी है, जो मरीजों में विकृति एवं मरीजों के प्रति अधिक भार बढ़ाने से संबंधित है। मस्तिष्क में पाये जाने वाले फॅटी ऍसिड के (शरीर के वृद्धि के लिए आवश्यक होने वाला असंपृक्त स्निग्धाम्ल) ऑक्सिडेशन के कारण (पदार्थ के प्राणवायु के साथ संयोग) प्राणवायु का मुक्त रेणु उत्पादित होकर उनका संचय होता है, जिससे ऑक्सिडेटिव तनाव बढ़ जाता है इससे मस्तिष्क की पेशीयों का नुकसान होता है।

विटामिन-सी फलों एवं सब्जी-तरकारियों में पाये जाने वाला एक सामान्य, पानी में घुलमिल जाने वाला विटामिन है, जो एक शक्तिशाली अँटिऑक्सीडेंट भी कहलाता है, परन्तु स्किझोफ्रेनिक मरीजों में उसका पावर अधिक प्रभावशाली हो जाता है। इससे उसका अभाव निर्माण हो जाता है। इस प्रकार प्राणवायु का मुक्त रेणु विरुद्ध लड़ने हेतु एक निश्चित मात्रा में होने वाले अँटिऑक्सीडेंट के अभाव के कारण स्किझोफ्रेनिया होने वाले मरीजों में ऑक्सिडेटिव तनाव का प्रतिकार करने के लिए अतिरिक्त मात्रा में विटामिन-सी की आवश्यकता होती है।

साधारण तौर पर स्किझोफ्रेनिया के उपचारों में अन्टिसायकोटिक औषिधियों के साथ-साथ विटामिन-सी का भी उपयोग किया जाता है।

कुछ संशोधकोंनुसार विटामिन-सी अँटिऑक्सीडेंट होने के कारण, अँल्झायमर नामक बिमारी से सुरक्षा प्राप्ति हेतु भी उपयुक्त साबित हो सकता है।

* बाल झड़ने से प्रतिबंध:-

अन्न संस्थान में पाचन क्रिया के दरमियान जब अन्न का रुपांतरण उर्जा में होते रहता है, उस समय कुछ रसायन एवं रेणु; जैसे- प्रतिक्रियाशील ऑक्सिजन प्रजाति एवं प्राणवायु का मुक्तरेणु मानवी शरीर में निर्माण होते हैं जो विषैली भी हो सकते हैं।

हम अकसर अन्न सेवन करते हैं और उससे प्राप्त होने वाला अँटिऑक्सिडेंटस इन हानिकारक रेणुओं के प्रभाव का निष्क्रीय कर सकते हैं तथा उनके विषैले परिणामों की जोखिम भी कम करते हैं। परन्तु जब उन्हें पूर्णत: निष्क्रीय नहीं किया जाता है (अधूरे अँटिऑक्सीडेंट क्रियाओं के कारण) उस वक्त उनका शरीर पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है। उदा. बाल आदि झड़ने लगना।

विटामिन-सी एक प्रभावशाली अँटिऑक्सीडेंट होने के कारण उसका नियमित एवं एक निश्चित मात्रा में सेवन करने पर मुक्त रेणुओं को निष्क्रीय किया जा सकता हैं। साथ ही हमारे शरीर पर होने वाले उनके हानिकारक प्रभावों पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है।

कोलेजन (जोड़ने वाला पदार्थ) की निर्मिती में भी विटामिन-सी एक महत्वपूर्ण किरदार निभाता है। कोलेजन बालों को मजबूत बनाता है; इसीलिए विटामिन-सी का बालों को झड़ने से रोकने के लिए प्रभावी तौर पर उपयोग किया जा सकता है और उसके अभाव अथवा कमी के कारण बाल कमजोर होकर झड़ सकते हैं।

* एक्झमा पर (इसब) उपचार :-

एक्झमा यह त्वचा पर दाहकता करने वाली एक बीमारी है। जिससे त्वचा लाल हो जाती है, वहाँ पर खुजली होती है और त्वचा रुखी हो जाती है, साथ ही त्वचा पर जगह-जगह पर धब्बे पड़ (भेगा) जाते हैं। कभी-कभी त्वचा पर छोटे-छोटे पानीदार/फुट कनिया पोड़े उठ जाते हैं जो रिस भी सकते हैं। सामान्य तौर पर, औषधि को गोलियाँ आदि लेने पर तथा त्वचा पर मलहम आदि लगाकर इसका उपचार किया जाता है।

इसके उपचार में विटामिन-सी का भी काफी मात्रा में योगदान पाया जाता है कारण,

१. त्वचा में उठने वाली जलन के प्रति जिम्मेदार होने वाले रसायनों को वह निष्क्रीय कर सकता है। २. अँटिऑक्सीडेंट होने के कारण, वह त्वचा के प्रतिक्रियाशील ऑक्सिजन प्रजाति तथा ऑक्सिजन मुक्त रेणु द्वारा होने वाले इस हानि से सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

* सनबर्न (सूर्य प्रकाश से होने वाली त्वचा की जलन) उपचार :-

जब सूर्यप्रकाश के सीधे संपर्क में त्वचा अधिक समय तक रहती है, उस वक्त अतिनील किरणों के कारण त्वचा की पेशीयों पर, ऑक्सिजन मुक्त रेणु एवं प्रतिक्रियाशील ऑक्सिजन प्रजातियों का प्रभाव विषैला होकर, त्वचा को नुकसान पहुँचा सकता है। इसे ही सनबर्न कहते हैं। त्वचा लाल एवं वेदनादायी बन जाती है और स्पर्श करने पर वह उष्ण प्रतीत होती। ऐसे में सनस्क्रिन का उपयोग करके तथा त्वचानुरुप पोषक, सनबर्न से हमारे त्वचा की सुरक्षा करने में मदद करते हैं। यदि विटमिन-सी के साथ इन सब का उपयोग किया जाता है, तो इससे और भी अधिक सुरक्षा होती है कारण विटामिन-सी अतिनील किरणों द्वारा तैयार होने वाले ऑक्सिजन मुक्त रेणुओं का निराकारण कर सकता है साथ ही इस से और भी अधिक नुकसान की संभावना को टाला जा सकता है।

* जल जाने पर होने वाले जखमों का भर जाना (ठीक होना) :-

‘जल जाने पर होने वाले जख्मों को ठीक करना’ यह वैद्यकीय शास्त्र में एक प्रमुख समस्या है। कोलेजन यह एक (सांधणारा) जोड़ने वला पदार्थ है और इसकी निर्मिती हेतु पानी में घुल-मिल जाने वाला विटामिन-सी आवश्यक है। पेशीयाँ, उतीयाँ, रक्तवाहिन्या, उपास्थि (कार्टिलेज), हड्डीयाँ, दाँत, त्वचा एवं स्नायुबंध (टेंडन) इन सब की अखंडता बनाये रखने के लिए यह कोलेजन आवश्यक है। विटामिन-सी रोगप्रतिकारक शक्ति की यंत्रणा सुधार सकते है, जो जखमों पर कि जाने वाली उपचार प्रक्रिया में मदद कर सकती है। विटामिन-सी अर्थात एस्कोर्बिक ऍसिड, यह एक कार्यक्षम अँटिऑक्सीडेंट है। वह त्वचा को अतिनील किरणों से एवं मुक्त रेणुओं से होने वाले नुकसान से सुरक्षित रखता है। इन विविध यंत्रणाओं द्वारा विटामिन-सी जले हुए जखमों को ठीक करने में सहायता प्रदान करता है।

* ऍलर्जी पर (वावडं) प्रतिबंध एवं कटौती :-

कुछ संशोधकों के मतानुसार, ऍलर्जी हो जाने पर, शरीर में उत्पन्न होने वाले रसायनों में से यूँ ही किसी रसायन को अर्थात (हिस्टॅमाइन पर) विटामिन-सी प्रतिबंध लगा सकता है। विटामिन-सी के इन्हीं गुणों के कारण वह अन्य औषधियों के साथ (ऍन्टी-ऍलर्जीक औषधियाँ) ऍलर्जी पर प्रतिबंध लगाने में एवं उपचारों के दौरान भी उसका उपयोग किया जा सकता है।

* मोतीबिंदू से सुरक्षा / पर प्रतिबंध :-

मोतीबिंदू यह एक निश्चित उम्र हो जाने के पश्चात होने वाली बीमारी है। जिसे हम पूर्णरुपेण टाल नहीं सकते हैं। परन्तु हम उस के प्रारंभ होने में विलंब जरुर कर सकते हैं और विटामिन-सी मुक्त आहार के सेवन से, हम उसके होने की संभावना को काफी हद तक रोक सकते हैं। मोतीबिंदू, नैसर्गिक तौर पर एक निश्चित उम्र हो जाने पर होता है और हमें अपनी आँखों कें होने वाले लेन्स (काँच) को अपारदर्शक बनाता है, मोतीबिंदू को निकाला जा सकता है; परन्तु आज भी दुनियाभर में अंधत्व का यह एक मुख्य कारण है। सामान्यत: आँखों में पाये जाने वाले द्रव में विटामिन-सी उच्च प्रमाण में होता है, जिस कारण ऑक्सिडेंटिव तनाव यदि यूँ ही बना रहा तो, उसकी परिणीती आगे चलकर आँखों के लेन्स में अस्पष्टता बढ़ाने का कार्य करती है। विटामिन-सी युक्त आहार के कारण आँखों में पाये जाने वाले द्रव पदार्थ में विटामिन-सी की मात्रा बढ़ सकती है, साथ मोतीबिंदू की संभावना से अतिरिक्त सुरक्षा प्राप्त होती है।

* त्वचा में कालानुसार (बदलाव होने) आने से / परिवर्तन से सुरक्षा :-

विटामिन-सी आहारों द्वारा सेवन करने से अथवा त्वचा पर मरहम के रुप में इस्तमाल करने से त्वचा में कालानुरुप होने वाले परिवर्तन एवं झुरियों के पड़ने से सुरक्षा प्रदान कर सकता है।

१. प्रदिर्धकाल हेतु / लम्बे समय तक के दौरान हेतु सूर्य के अतिनील किरणों के संपर्क में आने के कारण त्वचा पर ऑक्सिजन मुक्त रेणुओं के निर्मिती के कारण नुकसान पहुँच सकता है। विटामिन-सी यह अँटिऑक्सीडेंट होने के कारण यह ऑक्सिजन मुक्त रेणुओं का प्रभाव नष्ट करके त्वचा का नुकसान होने से सुरक्षा कर सकता है। २. उसी प्रकार विटामिन-सी कोलेजन के प्रभावी निर्मिती में सहायता प्रदान करता है (एक जोड़ने वाला पदार्थ) साथ ही त्वचा की अखंड़ता बनाये रखने में मदद करता है।

इस यांत्रिकज्ञान के कारण विटामिन-सी त्वचा में कालानुरुप होने वाले बदलाव एवं झुरियाँ पड़ने से सुरक्षा प्रदान कर सकता है।