Healthonic Healthcare - Aarogyam Sukhsampada
Aarogyam Sukhsampada - Health is the divine wealth.

हमारी स्थानबद्ध जीवनशैली और कई घंटों तक एक ही स्थान पर बैठै रहने से हमारे कामकाजी ढाँचे के कारण सारा बोझ हमारी रीढ़ की हड्डी पर पड़ता है। यह हमारी पीठ और गर्दन के दर्द जैसी घटनाओं के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है। स्थानबद्ध जीवनशैली के कारण आजकल पीठ दर्द और गर्दन दर्द बहुत आम बात है। इसके पीछे का मुख्य कारण है कार्यस्थल पर हमारे बैठने का गलत ढंग और कुछ सावधानियों का अभाव। हमारी अस्वस्थ जीवनशैली का चयन इसमें इज़ाफा करता है। यदि हम इन मुद्दों की उचित सावधानी बरतें तो यह हमारे लिए दर्द-मुक्त काम करने में सहायक हो सकता है।

आपकी रीढ़ की हड्डी की रक्षा तथा पीठ दर्द और गर्दन के दर्द से बचने के लिए, यहां पर कुछ सुझाव दिए गए हैं:

कार्यस्थल पर बरतनेवाली सावधानियों के सुझाव:

• कार्यस्थल पर कंप्यूटर पर काम करते समय एक अच्छी मुद्रा बनाए रखें:

कंप्यूटर पर काम करते समय, सही ढंग से बैठने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक है। जब हम लंबे समय तक गलत मुद्रा में बैठकर काम करते हैं, तब यह हमारी मांसपेशियों, हड्डियों, जोड़ों और अस्थि-बंधों पर काफी दबाव डालता है और इससे हमारी मेरुदंड की सीध को अस्तव्यस्त कर सकता है। इससे हमारी मांसपेशियों और जोड़ों पर अधिक ज़ोर पड़ सकता है और उनमें थकान हो सकती है जिससे पीठ और गर्दन क्षेत्र में दीर्घकालीन दर्द हो सकता है। यदि हम काम करते समय अच्छी मुद्रा बनाए रखने के लिए कुछ सावधानियों का पालन करते हैं, तो हम खुद को लगातार पीठ और गर्दन के दर्द से बचा सकते हैं:

कुर्सी पर बैठकर कंप्यूटर / मेज़ पर काम करते समय अच्छी मुद्रा बनाए रखने के लिए निम्नलिखित खयाल रखने चाहिएं:

१. अपने कंप्यूटर स्क्रीन की ऊंचाई को इस तरह से समायोजित करें कि आप उसे बराबर सीधा देख सकें।

२. कंप्यूटर स्क्रीन की ऊंचाई आपकी आंखों के स्तर के बराबर होनी चाहिए।

३. कंप्यूटर स्क्रीन और आपकी आँखों के बीच की दूरी इष्टतम होनी चाहिए ताकि आपको आगे झुकना न पड़े या आपकी आँखों पर तनाव न पड़े। (यदि आवश्यक हो, तो दूरी को समायोजित करें या अक्षर और फ़ॉन्ट का आकार बदलें)

४. कुर्सी पर बैठते समय, यह सुनिश्चित करें कि: • आपकी रीढ़ की हड्डी कुर्सी की पीठ के समान है। • कुर्सी की पीठ ९०o कोण में न होकर १००-११०o के कोण में होनी चाहिए। • यदि कुर्सी पर बैठने पर कमर को सहारा न मिलता हो, तो अपनी पीठ के निचले हिस्से के आधार के लिए पीछे एक गोल लपेटा हुआ तौलिया या कुशन रखें। • कुर्सी की ऊंचाई को इस तरह से सेट करें कि आपके दोनों पैर जमीन पर आराम से सीधे रखे जाएं। यदि आपका कद बहुत छोटा हो, तो आपके पैर रखने के लिए पायदान का उपयोग करें। • बैठते समय, आपके घुटने नितंबों के समानांतर या थोडेसे नीचे होने चाहिएं। • घुटिकाएं घुटनों के सामने होनी चाहिएं। • पैरों को एक दूसरे से क्रॉस करना टालें। • हाथ जमीन से समानांतर होने चाहिएं और टाईपिंग करते समय वे सुखदाई स्थिति में हों। • अपने कंधों को आरामदेह स्थिति में और सीधा रखें। (झुकाएं नहीं)। • गर्दन सीधी और ठोड़ी जमीन के समानांतर होनी चाहिए, इसे कंधों से बाहर न निकालें।

५. कीबोर्ड और माउस आपके हाथों के स्तर से थोडेसे नीचे होने चाहिएं, ठीक आपके डेस्क के नीचे के कीबोर्ड ट्रे में रखे होने चाहिएं।

६. बैठते समय अपनी पिछली जेब में कुछ भी (जैसे मोबाइल, बटुआ, आदि) न रखें।

• स्मार्टफ़ोन का उपयोग करते समय बरती जानेवाली सावधानियां:

हम में से ज्यादातर लोगों को अपनी गर्दन झुकाकर और नीचे देखते हुए अपने स्मार्टफोन पर पढ़ने या टेक्स्टिंग, आदि की आदत होती है। इससे हमारी गर्दन (सर्वाईकल स्पाईन) पर हम कितना तनाव डाल रहे हैं यह जाने बगैर हम ऐसा करते रहते हैं। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि यह तनाव कितना हो सकता है? आप विश्वास नहीं करेंगे, मगर यह तनाव आपकी पीठ पर एक बच्चे को ढोने के बराबर का होता है। इस पर सोचा जाए तो, हम औसतन हर दिन अपने स्मार्टफोन पर कम से कम एक घंटा बिताते हैं, यह हमारी गर्दन पर बहुत अधिक भार है। इतना सारा भार अंततः हमारे मेरुदंड पर पर्याप्त मात्रा में तनाव डाल सकता है। इससे मेरुदंड का प्रारंभिक पतन शुरु होता है जो अंततः गर्दन के दीर्घकालीन दर्द में प्रकटता है।

१. पढ़ते या टेक्स्टिंग करते समय स्मार्टफोन को आँखो के स्तर पर या कम से कम सीने के स्तर पर पकड़ें। यह हमारी गर्दन के झुकाव को कम करता है और रीढ़ की एक इष्टतम मुद्रा बनाए रखने में मदद करता है। २. जहाँ तक ​​संभव हो, अपने स्मार्टफोन पर टाईप करते समय खड़े होना टालें। आरामदाई कुर्सी पर बैठें, अपने हाथों को कुर्सी की बाहों पर आराम से रखें और फिर टाईप करें। यह गर्दन, कंधे और पीठ की मांसपेशियों पर तनाव को कम करेगा। ३. अपने फोन पर लंबे समय तक बात करना टालें और अगर कोई विकल्प न हो, तो हैंड्स-फ्री उपकरण या हेडफ़ोन का उपयोग किया जा सकता है। ४. बात करते समय अपने स्मार्टफोन को कान और कंधे के बीच पकडने के लिए अपनी गर्दन को कभी न मोड़ें। यह आपकी सर्वाईकल स्पाईन और गर्दन की मांसपेशियों पर बहुत तनाव डालता है जो आपको गर्दन में दीर्घकालीन दर्द दे सकता है। ५. टाईप करते समय अपने स्मार्टफोन को एक हाथ में पकड़ना टालें, क्योंकि यह आपके हाथ, गर्दन, कंधे और पीठ पर एक असमान तनाव डाल सकता है। इसके बजाय दोनों हाथों का उपयोग करें। ६. हमेशा लंबे संदेश भेजने के बजाय, जब भी संभव हो, फोन कॉल करने पर गौर करें। ७. एक ही बार में बिना रुके अपने स्मार्टफोन पर आपके द्वारा खर्च किए गए समय के बारे में सचेत रहें। थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद ब्रेक लेते रहें।

• जमीन से किसी वस्तु को उठाते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतें:

१. जमीन से किसी वस्तु को उठाते समय हमेशा अपने पैरों को मोड़ें। अपनी पीठ से मुड़कर झुकना टालें क्योंकि यह आपकी पीठ की मांसपेशियों और मेरुदंड पर काफी दबाव डाल सकता है, जिससे पीठ और गर्दन में दर्द हो सकता है। २. यदि वस्तु भारी हो तो उसे अकेले उठाने की कोशिश न करें, भले ही आप उसे उठा सकते हों, हमेशा मदद मांगिए। ३. जमीन से किसी वस्तु को उठाते समय उसे घुमाना/मरोडना टालें। यह मोच का कारण बन सकता है और पीठ में दर्द हो सकता है। ४. जब और जहाँ कहीं संभव हो, भारी वस्तु को खींचने की बजाय धकेलने की कोशिश करें।

• अन्य सावधानियां:

१. एक कंधे पर अपना बैग न उठाएं: हम में से कई लोग घर से दफ्तर जाते समय और लौटते समय ऑफिस बैग में अपने लैपटॉप, स्मार्टफोन, उनसे संबंधित चार्जर्स और बहुतसारा सामान ले जाते हैं। ऐसी स्थिति में, उचित यही होगा कि बैग का उपयोग ऐसे करें कि जिससे वजन दोनों कंधों पर समानरूप से बंट जाए। २. काम करते समय अपने स्थान पर बहुत देर तक न बैठे रहें; बल्कि, हर १ घंटे बाद कम से कम ५ मिनट के लिए उठें। (यदि संभव हो तो अपनी मेज़ / कार्यस्थल के इर्दगिर्द थोड़ी देर टहल लें)

जीवनशैली में परिवर्तन:

१. स्वस्थ आहार सेवन करें: • रिफाइंड चीनी, ट्रांस-चरबी, फ्रुक्टोज, विविध-उद्देश्य आटा/मैदा (उदा.: केक, पेस्ट्री, बर्गर, डीप फ्राईड पदार्थ, प्रक्रिया किए हुए पैक पदार्थ, आदि.) हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। यह बहुतसारे विषैले रसायनों का उत्पादन करते हैं जिससे शरीर में जलन तथा सूजन पैदा करते हैं। यह सेवन न केवल हमें मोटापे, मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के खतरों में डालता है बल्कि, पीठ और गर्दन समेत हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द और पीड़ा के लिए भी जिम्मेदार है। • एक संतुलित आहार (सब्जियां, फल, साबुत अनाज, फलियां, बीज, बीन्स, स्वस्थ तेल, {ओमेगा-३ और ओमेगा-६ का पर्याप्त मात्रा के अनुपात}, दूध, अंडे, आदि.) का सेवन हमें स्वस्थ रखता है। यह हमारे शरीर में ऐसे जहरीले रसायनों को उत्पन्न नहीं करता। यह जलन, सूजन और उनसे संबंधित विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं (उपरोक्त समस्याएं) को रोकने में मदद करता है, जिसमें पीठ और गर्दन के दर्द की समस्याएं भी शामिल हैं।

२. पर्याप्त मात्रा में विटामिन-डी और कैल्शियम पाएं: • हमारी मांसपेशियों और हड्डियों के विकास और रखरखाव के लिए, विटामिन-डी आवश्यक है। यह हमारे शरीर में कैल्शियम के अवशोषण के लिए भी आवश्यक है। • कम विटामिन-डी के स्तर हमारे शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को कम करते हैं। अपर्याप्त कैल्शियम के स्तर हमारी हड्डियों को कमजोर बना सकते हैं, जिससे संभवत: हड्डियों और जोड़ों तथा पीठ और गर्दन समेत विभिन्न जगहों के मांसपेशियों में दर्द हो सकता है। • इस प्रकार हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने के लिए हमारे शरीर में इष्टतम विटामिन-डी और कैल्शियम का होना आवश्यक है। यह पीठ, गर्दन या किसी अन्य दर्द की रोकथाम में भी सहायक होता है।

३. पीठ और गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए विशेषज्ञ मार्गदर्शन में नियमित व्यायाम करें: • हमारे शरीर के पेट और पीठ के क्षेत्र (मूल) की मांसपेशियाँ हमारी रीढ़ की हड्डियों, जोड़ों और रीढ़ के स्नायुबंधों को उत्कृष्ट सहारा प्रदान करती हैं (सीना और कमर)। गर्दन की मांसपेशियां भी ऐसा ही कार्य करती हैं (सर्वाईकल मेरुदंड को अच्छी तरह से सहारा देती हैं)। • स्थानबद्ध आचरण और निष्क्रिय जीवनशैली इन मांसपेशियों को कमजोर बनाते हैं। इस प्रकार, मेरुदंड पर्याप्त सहारा प्राप्त करने में विफल हो जाता है। इससे, कम से कम तनाव पर भी रीढ़ की हड्डी चोटों के प्रति संवेदनशील बनती है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर पीठ और गर्दन में दर्द होता है। • एक विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में नियमित व्यायाम गर्दन और मूल क्षेत्र की मांसपेशियों के लचीलेपन को बढ़ाने, मजबूत करने, मरम्मत करने और सुधार करने में मदद कर सकता है। यह इन मांसपेशियों में रक्त परिसंचरण में भी सुधार करता है, जो उचित पोषण प्रदान करता है और उन्हें टिकाऊ बनाता है। • मजबूत, टिकाऊ अन्तर्भाग और गर्दन की मांसपेशियां हमारी रीढ़ को उत्कृष्ट सहारा प्रदान कर सकती हैं और दीर्घकालीन पीठ या गर्दन के दर्द से पीड़ित होने की संभावना को कम कर सकती हैं।

४. नियमितरूप से चलें (वॉक करें): • हमारे धड़, कमर (मूल) क्षेत्र की मांसपेशियां हमारी कमर और मेरुदंड की स्थिरता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। गतिहीन जीवनशैली थोड़े ही वक्त में हमारी मांसपेशियों को कमजोर, सख्त और चोटों और दर्द के लिए प्रवृत्त कर देती है। यह हमारी मेरुदंड की स्वाभाविक सीध में बाधा भी डालती है, जिससे दीर्घकालीन दर्द होता है। • नियमितरूप से चलने से इन मांसपेशियों में रक्तवाहिनियों को खुलने में मदद मिलती है, जिससे उनमें ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति बढ़ती है। साथ ही, यह इन मांसपेशियों में जमा विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में भी मदद करता है। यह उनकी थकावट को कम करता है, लचीलेपन में सुधार लाता है और उन्हें मजबूत और दृढ़ बनाता है। • चलना पीठे के निचले हिस्से, मूल और धड़ की मांसपेशियों को मजबूत करके हमारे मेरुदंड का सहारा बेहतर करता है। साथ ही, यह उसके तनाव को कम करता है और इस प्रकार बार-बार उठनेवाले पीठ दर्द के जोखिम की रोकथाम करता है। • उपरोक्त लाभों के अलावा, चलना कई तरीकों से पीठ दर्द को कम करने में सहायक होता है, जैसे कि: § नियमितरूप से चलने से मांसपेशियों, अस्थिबंधों को और पैरों की नसों को, नितंब, टांगें और मेरुदंड के कार्यों को बेहतर बनाता है। यह पीठ के निचले हिस्से को लचीलापन, स्थिरता और पीठ के निचले हिस्से में भी सुधार लाता है, जो कि बेढंगी हलचल और चोट और दर्द के जोखिम की संभावना को कम करता है। ⦁ यह हमारी हड्डियों को मजबूत बनाता है और वजन कम करने में मदद करता है।

५. जलयोजित रहें ⦁ लंबे समय तक पानी कम पीने से दीर्घकालीन शुष्कता होती है। ⦁ इंटरवर्टेब्रल डिस्क एक खंखरा श्लेषी संरचना है जो हमारे मेरुदंड में संलग्न कशेरुकों के बीच मौजूद होती है। इसके केंद्र में मौजूद श्लेषी पदार्थ पानी से बना होता है जो इसे खंखरा बनाता है। इस डिस्क के प्राथमिक कार्य कशेरुक को गद्दीदर भराव प्रदान करना, घर्षण से बचाना, आघात अवशोषक के रूप में कार्य करना और गतिशीलता प्रदान करना है। ⦁ जब शरीर दीर्घकालीन शुष्कता का सामना कर रहा होता है, तो यह श्लेषी पदार्थ पानी खो देता है, यह डिस्क को घाव लगने के प्रति संवेदनशील बनाकर ध्वस्त कर देता है। यह संलग्न कशेरुकाओं के बीच घर्षण को बढ़ा सकता है, कशेरुक स्तंभ से बाहर निकलनेवाली संवेदनशील नसों पर दबाव डाल सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पीठ दर्द हो सकता है। ⦁ इसे रोकने के लिए, पर्याप्त मात्रा में पानी पीना और खुद को अच्छी तरह से जलयोजित रखना महत्वपूर्ण है।

६. धूम्रपान बंद करें ⦁ धूम्रपान शरीर में जहरीले रासायनिक परिसंचरण के स्तर को बढ़ाता है, जिससे पूरे शरीर में दाह तथा सूजन और दर्द का खतरा बढ़ जाता है, जिसमें पीठ और गर्दन भी शामिल हैं। ⦁ धूम्रपान धमनियों के अंदर की पोली जगह को कम कर देता है और रक्त परिसंचरण को धीमा कर देता है। यह कमर की मांसपेशियों, जोड़ों, स्नायुबंधों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों के प्रवाह को कम कर देता है, जिससे उनका अध:पतन होता जाता है और बाद में दर्द होता है। ⦁ निकोटिन हमारे खून में कैल्शियम के अवशोषण को कम करता है। पर्याप्त कैल्शियम के बिना, हमारी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और चोटों के प्रति संवेदनशील हो जाती हैं। यदि यह पीठ या गर्दन के क्षेत्र में हो, तो यह दीर्घकालीन पीठ और/या गर्दन के दर्द के रूप में प्रकट हो सकता है। ⦁ दीर्घकाल धूम्रपान करनेवाले लोगों में सांसों की बीमारियाँ होती हैं। ये बीमारियाँ दीर्घकालीन खांसी से जुडी होती हैं - बार-बार खांसने से पीठ के निचले हिस्से में मांसपेशियों पर तनाव के परिणामस्वरूप दर्द होता है।

७. अपने वजन को नियंत्रित रखें • हमेशा सतर्क रहकर अपने वजन को नियंत्रण में रखना महत्वपूर्ण है। वजन बढ़ना या मोटापा हमारे पेट और कमर के आसपास अतिरिक्त चरबी के संचय से जुड़ा हुआ है। पेट के चारों ओर से यह अतिरिक्त भार कोख (कमर का घेरा) पर आगे कि तरफ खींचता है, जो कमर और मेरुदंड की मांसपेशियों और स्नायुबंधन पर अतिरिक्त दबाव डालता है। इस अतिरिक्त तनाव की भरपाई करते हुए मेरुदंड और कमर की मांसपेशियाँ असमान रूप से तनावग्रस्त हो जाती हैं। यह डिस्क या अन्य मेरुदंड की संरचनाओं में चोट की संभावना को बढ़ा देता है, जो कमर में दीर्घकालीन दर्द के स्वरूप में प्रकट होता है। • मोटे व्यक्ति के शरीर में जमा अतिरिक्त चरबी हानिकारक विषैले पदार्थों को स्रावित करती है। ये विषैले पदार्थ इंटरवर्टेब्रल डिस्क को कमजोर कर सकते हैं और मेरुदंड को भी चोट और दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकते हैं।

८. पर्याप्त नींद लें • पूरे दिन हमारे शरीर में होनेवाली टूट-फूट के इलाज के लिए नींद आवश्यक है। यह शरीर की हर प्रणाली को उचित विश्राम पाने में भी सहायक होती है। • अपर्याप्त नींद या नींद की कमी हमारे अस्थि-पंज़र प्रणाली के उचित विश्राम को रोकती है और उनके प्राकृतिक उपचार में भी बाधा डालती है। अपर्याप्त नींद हमारे शरीर के भीतर दर्द पैदा करनेवाले विषैले रसायनों के स्रवण को सक्रिय कर सकती है। इस प्रकार यह अस्थि-पंज़र प्रणाली को दीर्घकालीन दर्द और पीड़ा के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है। • इसलिए पर्याप्त नींद हमारी मांसपेशियों का तनाव कम करने के लिए, उनके उचित विश्राम और उपचार के लिए और दीर्घकालीन पीठ या गर्दन के दर्द को रोकने के लिए आवश्यक है।

९. बैठते समय, भोजन करते समय, खड़े रहकर सीधी मुद्रा बनाए रखें (झुकें नहीं): • जब लंबे समय तक हम गलत मुद्रा बनाए रखते हैं, तब कमर और गर्दन तथा मेरुदंड की मांसपेशियों पर भी बहुत अधिक तनाव पड़ सकता है। • जब यह लंबे समय तक जारी रहता है, तो यह शरीर रचना संबंधित अभिलक्षणों और मेरुदंड की सीध में बदलाव ला सकता है। यह मेरुदंड के आसपास की मांसपेशियां, स्नायु और नसों में समस्याएं पैदा कर सकता है। यह सब अंततः दीर्घकालीन गर्दन या पीठ दर्द के रूप में प्रकट हो सकता है। • इसलिए, खड़े रहते समय, चलते समय, बैठते समय, भोजन, आदि के दौरान अच्छी मुद्रा बनाए रखना, दीर्घकालीन पीठ और गर्दन के दर्द की रोकथाम के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

१०. अच्छे फिटिंगवाले कपड़े पहनें; बहुत तंग कपड़े आपकी मांसपेशियों पर तनाव डाल सकते हैं और पीठ या गर्दन में दर्द का कारण बन सकते हैं: बहुत तंग या सिकुड़े हुए कपड़े पहनने से हमारी स्वाभाविक गति बाधित हो सकती है। यह हमारी पीठ, गर्दन और कंधों के क्षेत्र में मांसपेशियों पर अधिक तनाव और खिंचाव पैदा कर सकती है, जिससे इन क्षेत्रों में दर्द और पीड़ा होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, पीठ और गर्दन के अनावश्यक दर्द को रोकने के लिए हमें हमेशा अच्छे फिटिंगवाले कपड़े ही पहनने चाहिए।

११. आपके द्वारा उपयोग किए जानेवाले जूतों के प्रति सचेत रहें • यदि हम अपने दीर्घकालीन पीठ दर्द की रोकथाम चाहते हैं, तो हमें अपने द्वारा उपयोग किए जानेवाले जूतों के प्रति सचेत रहना चाहिए। • २ इंच से अधिक ऊँची एड़ीवाले जूते हमारी पीठ की स्वाभाविक मुद्रा को बिगाड़ सकते हैं। यह मेरुदंड के सीध में बाधा डाल सकते हैं, जो पीठ की मांसपेशियों में अधिक दबाव डाल सकता है, जिससे बार-बार दर्द और पीड़ा होती है। • यहां तक कि जो जूते बहुत तंग हों, बहुत ढीले हों, या सपाट हों, उनसे बननेवाली अस्वाभाविक मुद्रा के कारण पीठ की मांसपेशियों पर असमान खिंचाव पड़ सकता है, जो अक्सर पीठ दर्द का कारण बनता है।

इसलिए, हमें दीर्घकालीन पीठ दर्द से बचने के लिए सही जूतों का चयन करना चाहिए।

१२. अपनी पीठ या करवट के बल सोएं, पेट के बल सोने से बचें क्योंकि, यह हमारे मेरुदंड पर बहुत दबाव डालता है

१३. खड़े रहते समय हमेशा अपने दोनों पैरों पर अपना वजन बांटकर खड़े रहें।

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